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बलिया। आस्था, परंपरा और पहचान — इन तीनों का संगम माने जाने वाला बलिया का ऐतिहासिक ददरी मेला इस बार अपनी रौनक खो बैठा है। कार्तिक पूर्णिमा कल है, लेकिन मेला परिसर की तस्वीर अभी भी अधूरी तैयारियों और अव्यवस्थाओं की कहानी बयां कर रही है।

जहां हर साल इसी समय तक झूले, मीना बाजार और दुकानों से पूरा मैदान सज जाता था, वहां अब सन्नाटा पसरा है। श्रद्धालु गंगा स्नान के बाद मेले की चहल-पहल देखने आते हैं, पर इस बार निराश होकर लौट रहे हैं।
मेला परिसर की जमीन दलदल में तब्दील है, रास्तों की मरम्मत अधूरी पड़ी है और व्यापारियों को अभी तक जमीन आवंटन का काम चल रहा है। चारों ओर अव्यवस्था और बदइंतजामी का आलम है।

प्रशासनिक अधिकारियों का कहना है कि लंपी स्किन डिज़ीज़ (LSD) के खतरे को देखते हुए इस बार पशु मेला आयोजित नहीं किया जा रहा है, ताकि बीमारी का संक्रमण न फैले। लेकिन लोगों का कहना है कि मीना बाजार, झूला और दुकानों की व्यवस्था में जो सुस्ती दिखी है, वह प्रशासन की लापरवाही का परिणाम है।
हर साल इस मेले में बलिया, मऊ, गाजीपुर, बिहार और सीवान तक से हजारों की भीड़ उमड़ती है। यह न सिर्फ धार्मिक आयोजन है, बल्कि स्थानीय व्यापार का भी बड़ा केंद्र रहा है। मगर इस बार मेले की चमक फीकी पड़ने से श्रद्धालुओं के साथ व्यापारियों में भी नाराजगी है।

स्थानीय लोगों का कहना है कि आस्था तो वही है, पर अब मेले जैसी रौनक नहीं। पहले जहां घंटे-घड़ियाल और बच्चों की किलकारियों की आवाज़ें गूंजती थीं, अब वहां सन्नाटा है।
अब देखना यह है कि आने वाले दिनों में क्या प्रशासन ददरी मेले को फिर से रफ्तार दे पाएगा, या इस बार यह ऐतिहासिक परंपरा सिर्फ औपचारिकता बनकर रह जाएगी।
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